FeaturedLatestबिज़नेस

ट्रंप जीते तो भारत को क्या फायदा, टेक इंडस्ट्री की क्यों बढ़ी उम्मीद

नई दिल्ली

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प मोड़ पर है। डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने की संभावनाएं बढ़ती दिखाई दे रही हैं। इन संभावनाओं के पीछे कई वजहें हैं। कुछ पॉलिटिकल कमेंटेटर्स का मानना है कि ट्रंप पर हुआ जानलेवा हमला उनके पक्ष में गया है। वहीं, सिलिकॉन वैली से मिल रहा समर्थन भी ट्रंप की उम्मीदों को हवा दे रहा है। इस हफ्ते की शुरुआत में एलन मस्क और एंड्रीसन होरोविट्ज के को-फाउंडर्स ने ट्रंप के समर्थन में अपनी बातें रखीं। राजनीति के लिहाज से सिलिकॉन वैली की अप्रोच में यह बदलाव काफी अहम माना जा रहा है। इन चीजों पर भारत से भी करीबी नजर रखी जाती है। इसकी वजह यह है कि चीन-अमेरिका के तल्ख रिश्तों का फायदा भारत को मिल सकता है। आइए समझते हैं कैसे…

चीन को लेकर डोनाल्ड ट्रंप का रवैया काफी सख्त रहा है। टैरिफ और टेक रेस्ट्रिक्शंस को लेकर ट्रंप का रुख सिलिकॉन वैली की रणनीति से मेल खाता है। ट्रेड वॉर के बीच चीनी निर्माताओं और बाजार पर अधिक निर्भरता अमेरिकी टेक मार्केट को रास नहीं आ रही है। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप के साथ आकर सिलिकॉन वैली टेक्नोलॉजी के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में साम्य बिठाने की कोशिश करती नजर आ रही है। इसका सीधा फायदा भारत जैसे बड़े बाजार को मिल सकता है। आईआईएम इंदौर में जियोपॉलिटिक्स पढ़ाने वाले प्रोफेसर जी वेंकट एक सिनोलॉजिस्ट हैं और फुलब्राइट फेलो हैं। प्रोफेसर वेंकट कहते हैं कि अगर ट्रंप राष्ट्रपति बनते हैं तो इतना तो तय है कि भारत-अमेरिका और करीब होंगे। उन्होंने कहा कि ट्रंप के पूर्व के कार्यकाल में भी हम ऐसा देख चुके हैं।

प्रोफेसर वेंकट ने आगे कहा कि चीन और अमेरिका संबंधों में तल्खी बढ़ेगी। इसका सीधा फायदा भारत को मिल सकता है। टेक इन्वेस्टमेंट भारत आएंगे। प्रोफेसर वेंकट ने इसको उदारहण से भी समझाया। उन्होंने कहा कि चीन से जब अमेरिका के संबंध बिगड़े तो गैर चीनी देशों में सप्लाई के लिए एप्पल को भारत का रुख करना पड़ा। उन्होंने कहा कि भारतीय डेमोग्राफी और सस्ते स्किल्ड लेबर ने इस मामले में एप्पल की मदद की। कुछ ऐसा ही ताइवानी कंपनी फॉक्सवैगन ने भी किया था। प्रोफेसर वेंकट ने कहा कि इसी तरह दूसरी बड़ी टेक कंपनियां भी भारत का रुख कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत के लोगों में टेक्नोलॉजी को लेकर रुझान भी बढ़ रहा है। यह बात भी अमेरिकी कंपनियों को यहां आने और निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

एक चुनौती भी
विडंबना यह है कि भारत और चीन के बीच ज्यादातर मामलों में टकराव रहता है, लेकिन जब ग्रीन टेक की बात आती है, तो दोनों देशों की हालत एक जैसी है। इससे अमेरिकियों को भी समस्या है। अगर ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं तो यह और बढ़ जाएगा। बाइडेन प्रशासन ने मई में चीनी ग्रीन टेक कंपनियों पर भारी करों की घोषणा की थी। अगर ट्रंप सत्ता में आते हैं तो यह और भी बढ़ जाएगा। यही वह चीज है जहां भारतीय राजनियकों को बहुत फूंक-फूंककर कदम रखना होगा। प्रोफेसर रमन कहते हैं कि ट्रंप ग्लोबल वॉर्मिंग या क्लाइमेट चेंज जैसी चीज में यकीन नहीं रखते। पहले भी ट्रंप ऐसी बातों से दूरी बना चुके हैं। भविष्य में भी वह ऐसा करेंगे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए भारत को चीजों को बहुत सावधानी से डील करना होगा।  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *